
बनारस में जलती चिताओं के बीच लगे ठुमके; अगला जन्म सुधारने के लिए जमकर नाचीं नगरवधुएं, जानिए क्या है 350 साल पुरानी परंपरा – मणिकर्णिका घाट पर शुक्रवार रात को दिखा अद्भुत नजारा, पूरी रात चलता रहा जागरण*
वाराणसी : महाश्मशान पर जलती चिताओं के बीच नगर वधुओं ने जमकर डांस किया. इसके जरिए उन्होंने अपने अगले जन्म को सुधारने की कामना की. नगर वधुओं को देखने के लिए लोगों की भीड़ लगी रही. पूरी रात जागरण चलता रहा. चैत्र नवरात्र की षष्ठी तिथि पर शुक्रवार की रात मणिकर्णिका घाट पर अद्भुत नजारा देखने को मिला. बनारस की यह परंपरा लगभग 350 वर्षों से भी ज्यादा पुरानी है.
महाश्मशान वह अंतिम स्थान है, जहां इंसान राख में तब्दील हो जाता है. वह राख मुक्ति की राह अग्रसर करती है. हालांकि दुनिया से जाने वाले अपने पीछे रोते-बिलखते परिजनों को छोड़ जाते हैं. बनारस में इस स्थान से कई अद्भुत परंपराएं भी जुड़ी है. इनका निर्वहन कई वर्षों के किया जाता है. नगर वधुए यहां नृत्यांजलि प्रस्तुत करती हैं. शुक्रवार को भी यह नजारा देखने को मिला.
इस अद्भुत आयोजन के बारे में ममहाश्मशान नाथ मंदिर सेवा समिति के अध्यक्ष और आयोजक चैनू प्रसाद गुप्ता ने बताया कि यह परंपरा काफी पुरानी है. कहा जाता है कि राजा मानसिंह द्वारा जब बाबा के इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया था, तब मंदिर में संगीत के लिए कोई भी कलाकार आने को तैयार नहीं हुआ था. हिन्दू धर्म में हर पूजन या शुभ कार्य में संगीत का कार्यक्रम जरूर होता है.इसी कार्य को पूर्ण करने के लिए जब कोई तैयार नहीं हुआ तो राजा मानसिंह काफी दुखी हुए. यह संदेश उस जमाने में धीरे-धीरे पूरे नगर में फैलते हुए काशी के नगर वधुओं तक भी जा पहुंचा. नगर वधूओं ने डरते-डरते अपना यह संदेश राजा मानसिंह तक भिजवाया कि यह मौका अगर उन्हें मिलता है, तो वह अपने आराध्य संगीत के जनक नटराज महाश्मसानेश्वर को अपनी भावाजंलि प्रस्तुत कर सकती हैं.
मणिकर्णिका घाट पर पूरी रात नाचीं नगरवधुएं. यह संदेश पाकर राजा मानसिंह काफी प्रसन्न हुए. उन्होंने नगर वधुओं को आमंत्रित किया गया. तब से यह परंपरा चल निकली. वहीं दूसरी तरफ नगर वधुओं के मन में यह विचार आया कि अगर वह इस परंपरा को निरंतर बढ़ाती रहीं तो उन्हें इस नारकीय जीवन से मुक्ति मिलेगी. इसके बाद से लगातार यह परंपरा चली आ रही है. आज भी नगर वधुए कहीं भी रहे लेकिन चैत्र नवरात्रि के सप्तमी को यह काशी के मणिकर्णिका घाट पर स्वयं आ जाती हैं.शुक्रवार को पूरी रात जागरण चला. जलती चिताओं के पास मंदिर में अपने परंपरागत स्थान से इसकी शुरुआत हुई. इस पूरे आयोजन के दौरान बड़ी संख्या में महाश्मशान में लोग मौजूद रहे. नगरवधुए भी अपने आप को सौभाग्यशाली समझते हुए भगवान भोलेनाथ के आगे प्रस्तुति देकर खुद को भाग्यशाली मानती हैं. उनका कहना था कि हम तो इसी उम्मीद के साथ यहां आते हैं कि हमारा यह जन्म मुक्ति के साथ खत्म हो और अगला जन्म हमें किसी ऐसे रूप में मिले जहां हम भी एक सौभाग्यशाली और संपन्न जीवन को जीकर एक अच्छे परिवार में जा सकें. नगर वधुओं का कहना है कि इस नरक भरे जीवन से मुक्ति की कामना के साथ हम भोलेनाथ के आगे अपना यह नृत्य प्रस्तुत करते हैं और उनसे यही कामना करते हैं कि इस नरक भरे जीवन से मुक्ति देकर हमें अगला जीवन सुखमय और अच्छा दें.